अमृत कहाँ हैं
एक बार विद्वानों की सभा में चरचा हो रही थी की जीवन का अमृत कहा हैं ?
दूसरे विद्वान ने कहा - 'स्वर्ग में अमृत होता तो स्वर्ग का पतन नहीं होना चाहिये, इसलिए वास्तिविक अमृत स्वर्ग में
नहीं समझते।'
तीसरे ने कहा - ' अमृत चन्द्रमा में है।'
चौथे ने कहा - 'अगर अमृत चन्द्रमा में है, तो उसका क्षय क्यों होता हैं ?' 'किसी ने कहा - 'सागर में अमृत हैं '
अन्य ने कहा - ' सागर में अमृत होता, तो उसका जल खारा क्यों होता ?'
बहुत देर तक जब इसका कोई निर्णय न कर सका, तो वहाँ महाकवि कालिदास जी आ गये। सबने उनको
प्रणाम किया और इस समस्या का समाधान पूछा, तो वे बोले - " सन्तो के कंठ में , उनकी आत्मिक वाणी में ही
वास्तिविक अमृत होता हैं। सन्त - सत्पुरुषों के हिर्दय से जो आत्म - अनुभव, आत्मिक आनंद और ईश्वरीय शांति से
ओत - प्रोत अमृतवाणी का झरना फूटता है, वही सच्चा अमृत है।'
वेद, शास्त्र , समृतियाँ , पुराण एवं जितने भी सच्छास्त्र बने है, संतो - महापुरषो के अनुभवी अमृत से बने हैं। भगवान
श्री कृष्णा के मुख प्रवचनों से श्रीमद्भ भगवतगीता गीता इसी अमृत की अमर निशानी हैं।
कमेंट करके बताएं कि हम इस कहानी से क्या सीखते हैं।
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